तुमने मुझे जो दी थी
पुरी की पूरी एक दुनिया
उसमे सुख के लम्हे कम
दुःख की बारात ज्यादा थी
पर मे हताश नही हू
जानती हू हर अधेरे के बाद
निकलता हे सूरज
रोशन करता हे दुनिया को
देखना एक दिन इन्ही हाथो से हम
उसकी उजास में
मिटा देगे दुःख के अधियारो को
हमेशा-हमेशा के लिए
अभिव्यक्ति
विचारों की अभिव्यक्ति
Friday, November 18, 2011
Wednesday, July 27, 2011
नीद क्यों नही आती
रात के सन्नाटे में अपनी ही सासों की आवाज
लगती हे अजनबी ,जब पलको पर
नही उतरती हे नीद
दूर से कोई हाथ आता हे
मूद्ता हे पलको को ,कहता हे सो जाओ
यह वक्त जागने का नही हे
माना कि रात लम्बी हे ,उससे भी बड़े हे तुम्हारे ख्बाब
जरूरी नही पलको में सजा हर ख्बाब
हकीकत बन जमीन पर उतर आये
इस धरा ने भी तो सजाये थे कितने ख्बाब
सोचो कितनो को तुमने अपने हाथो से सवारा हे
ये भूखे -नगे ,ठड में ठिठुरते ,ककाल से शरीर
घुटनों में पेट दिए ,फिर भी सो रहे हे निश्चित
नर्म-गुदगुदे बिस्तर पर ,सोचो तुम्हे क्यों नीद नही आती रात भर
लगती हे अजनबी ,जब पलको पर
नही उतरती हे नीद
दूर से कोई हाथ आता हे
मूद्ता हे पलको को ,कहता हे सो जाओ
यह वक्त जागने का नही हे
माना कि रात लम्बी हे ,उससे भी बड़े हे तुम्हारे ख्बाब
जरूरी नही पलको में सजा हर ख्बाब
हकीकत बन जमीन पर उतर आये
इस धरा ने भी तो सजाये थे कितने ख्बाब
सोचो कितनो को तुमने अपने हाथो से सवारा हे
ये भूखे -नगे ,ठड में ठिठुरते ,ककाल से शरीर
घुटनों में पेट दिए ,फिर भी सो रहे हे निश्चित
नर्म-गुदगुदे बिस्तर पर ,सोचो तुम्हे क्यों नीद नही आती रात भर
Saturday, June 19, 2010
वे दिन भी क्या दिन थे
घर में मचा था धूम-धूडाका ।सारे दिन मस्ती बच्चों की ।लडाई-झगडे भी कब होता था दिन कब होती थी रात ।बच्चों की कहानी सुनाने की जिदएक और की कभी खत्म न होने वाली फरमाइशें अब सब तरफ छाया है बस सन्नाटा ।विचलित करता अतीत की यादों में ढकेलता .
Sunday, August 2, 2009
ट्रेन के सहयात्री से अच्छा
कोई और हो ही नहीं सकता
आपका राजदार ,बातों ही बातों में
कट जाता है कितना भी लम्बा रास्ता
कब आ जाती है मंजिल पता ही नहीं चलता
बातों ही बातों में खुल जाते हैं कितने ही राज
जिन्हैं किसी परिचित से करने में होता है संकोच
जितने मनोयोग से सुनी जाती हैंआपसी बातें
उतनी ही निस्संगता से पीछे छूट जाती हैं
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