Saturday, June 19, 2010

वे दिन भी क्या दिन थे

घर में मचा था धूम-धूडाका ।सारे दिन मस्ती बच्चों की ।लडाई-झगडे भी कब होता था दिन कब होती थी रात ।बच्चों की कहानी सुनाने की जिदएक और की कभी खत्म न होने वाली फरमाइशें अब सब तरफ छाया है बस सन्नाटा ।विचलित करता अतीत की यादों में ढकेलता .